इन तीनों कोठियों में बीसपंथी कोठी सबसे प्राचीन है। इसकी स्थापना सम्मेदशिखर की यात्रार्थ आने वाले जैन बंधुओं की सुविधा के लिए लगभग चार सौ वर्ष पूर्व की गई थी, ऐसा कहा जाता है। यह कोठी ग्वालियर गादी के भट्टारक जी के अधीन थी। इस शाखा के भट्टारक महेन्द्रभूषण ने शिखर जी पर एक कोठी और एक मंदिर की स्थापना की और मंदिर में पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान करायी । उन्होंने एक धर्मशाला भी बनवायी। समाज के दो दानी सज्जनों ने दो मंदिर भी बनवाये । महेन्द्रभूषण के पश्चात् शतेन्द्रभूषण, राजेन्द्रभूषण, शिलेन्द्रभूषण और शतेन्द्रभूषण भट्टारक क्रम से कोठी के अधिकारी हुए। बीसपंथी कोठी के बहुत दिनों पश्चात् (लगभग २५० वर्ष बाद) श्वेताम्बर कोठी का निर्माण हुआ । उसके लगभग १०० वर्ष बाद तेरापंथी कोठी बनी है। बीसपंथी एवं तेरहपंथी दोनों कोठियों के अन्तर्गत अनेक दिगम्बर जिनमंदिरों की व्यवस्थाएँ संचालित होती हैं।